Saturday, February 20, 2010

उफ …............ये मंहगाई
स्नेहा शर्मा
करोल बाग में रहने वाली शालिनी वर्मा बताती है कि अब दिल्ली में रहना मुश्किल हो गया है।आसमान छूती मंहगाई अब जीने नही देगी।पहले दाल, फिर चीनी, अब दूध, क्या खाए ,क्या न खांए जैसी स्थिती है।पहले थाली में सब तरह की चीजें देखने को मिलती थी पर अब समझ नहीं आता क्या बनांऊ।एक निश्चित आमदनी में घर का खर्च चलाना मुश्किल है, जब चीजों के दाम आसमान छूं रहे हो।इसमें कोई शक नहीं कि पिछले कुछ महीनों में चीजों के दाम जिस तरह से बढ़ रहे है ,आम आदमी ही नही,उच्च और मध्यम वर्ग की भी कमर टूटने लगी है।
यही स्थिति जामिया के मास कम्यूनिकेशन के छात्र नीरज की भी है।नीरज कहते है, कि भूख लगती है पर समझ नहीं आता कि उन पैसो में क्या खरीदूं की पेट भर जाये।मुझे कभी कभी किताब और नोट बुक खरीदने के लिए भूख से समझौता करना पड़ता है।पहले दूध रोटी खा कर भी गुजारा चल जाता था अब स्थिती यह है कि या तो रोटी खाऊं या दूध।
यह बात सही है कि बढ़ते मूल्यों के लिए एक कारण को रेखांकित नहीं किया जा सकता लेकिन इस मुद्दे पर कोई भी पहल नहीं दिखाई दे रही हैं।वहीं कृषि मंत्री शरद पवार का यह बयान कि “मै कोई ज्यातिषी नहीं जो चीजो की कीमतों की भविष्यवाणी कर सकूं” इससे साफ साबित होता है कि वह अपना पलड़ा झाड़ रहे हैं।यह स्पष्ट है कि खाद्य मंत्रालय के कामकाज में बुनियादी खामियां है और इसका फायदा मुनाफाखोरी में लिप्त चंद लोग उठा रहे है।
एनडीटीवी के मुकाबला कार्यक्रम में आडियन्स में बैठी स्नेहा कहती हैं कि शो में मुद्दा मंहगाई था।सारे नेता आपस में उलझते रह गये,कुछ निष्कर्ष न निकला। एक दूसरे पर छिंटाकसी से से फूरसत नहीं थी।सब अपनी साख बचाने में लगे थे।मंहगाई का मुद्दा तो केवल डिबेट का विषय बन गया है।सोचने की बात है पर मंहगाई जैसे गंभीर मुद्दे पर नेता कुछ एक्शन लेने की बजाय अपनी रोटियां सेकने में लगे है।मंहगाई के संदर्भ में यह भी नहीं कहा जा सकता कि यह केवल बड़े शहरों के लिए सिरदर्द बना है ,ग्रामीण क्षेत्रों और कस्बों को भी इस समस्या से जूझना पड़ रहा है। स्थिति चिंताजनक है ,न जाने अब किस- किस के दाम बढ़ेगें।मंहगाई को रोकना ही पड़ेगा।तब जाकर शालिनी शर्मा, नीरज जैसे अन्य जनता कम से कम दो वक्त की रोटी और दाल भी ढंग से खा सके।

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