Thursday, March 18, 2010

तनाव भरा माहोल ,आखो में आस ,चेहरे पर उदासी,यही नजारा है आई आई एम सी के हिंदी पत्रकारिता के स्टुडेंट्स का .आठ महीने के बाद अब वो समय आ गया है जब सबको अपने करियर की टेंशन हो रही ही .कैम्पस की बात करे तो नजारा कुछ और ही है.कभी सब अपने से लगते थे अब सब बेगाने से लगते है.हमारी मस्ती हमारा फन न जाने कहा खो गया है .नौकरी किसी को इतना बदल दे सुना था यहाँ देख भी लिया .रुखी रुखी सी हवाए ,पतझर का मोसम न जाने क्यूँ अब यहाँ उलझन सी हो रही है,जब मैंने हिंदुस्तान का प्लेसमेंट टेस्ट दिया था तब यकीन नहीं था मेरा हो जायेगा ,मेरे लिए ये एक सुखद एहसास था ,मै बहुत खुश हूजिंदगी का पहला प्लेसमेंट टेस्ट में असफल रही लेकिन दूसरा मेरे नसीब में था .मेरा हिंदुस्तान में हो गया मेरे लिए यही सही था तो अब समय है खुद को प्रूफ करने का ,मै तैयार हू .
ना जाने क्यूँ तेरे आने का इंतजार है
ना जाने क्यूँ तुझे पाने का इंतज़ार है
कुछ है जो मै यहाँ हू
कुछ कहने को बेकरार हूँ
न जाने क्या है ये ,पर
उसे सुनने को हरवक्त तैयार रहती हूँ
पूछती हूँ हर वक़्त उनसे ,bata दो अब
ना जाने क्यूँ तेरे आने का इंतजार है
ना जाने क्यूँ तुझे पाने का इंतजार है