Wednesday, November 11, 2009
तुम होते तो क्या होता
तुम होते तो क्या होता
वो अकेली रात ,
सुनसान कमरे में मै
सोच रही थी ये ,
तुम होते तो क्या होता।
न जाने क्या हलचल हुई,
कौन सी मज़बूरी थी ,
मन मानने को तैयार नही,
क्यूँ इतनी मज़बूरी थी ।
मैं अंधेरे के आगोश में,
सोच रही थी मै,
इस पल ने बाँधा मुझे ,
महसूस कर रही थी ।
क्या हुआ कुछ न जाना मैने,
क्या सोचा पता नहीं,
तुम थे कि नहीं,
यह भी मुझे याद नहीं।
आकर न जाया करो,
पास मेरे बैठा करो,
सुनना चाहती हूं तुम्हे मैं,
हर वक्त कुछ कहा करो।
और इन्ही ख्यालों में,
कहती रहती हूं कि,
तुम होते तो ये होता,
तुम होते तो वो होता।
Tuesday, November 10, 2009
यह रिश्ता क्या कहलाता है
यह रिश्ता कया कहलाता है,
कहीं इतना प्यार ,
तो कही इतनी इज्जत,
आखों में है टकरार ,
दिलों में है जज्बात है।
बिना कहे समझ में आना
जाते जाते पलट जाना,
आखों में नमीं है मेरे
मोती बन कर तेरे आखों से गिर जाना ।
कुछ तुम कहो कुछ मै कहू
दिन का ढल जाना।
बातों ही बातों में
कहीं तुम मेरे न हो जाना
बात करती हूँ तुमसे मगर
दिल थोड़ा झिझकता है,
कितनी ही बात करती हूँ तुमसे
कोई निश्कर्ष नहीं निकलता है।
कैसी उलझन है मेरी
,क्या कहूँ में तुमसे,
पर सुनों बता ही दो
यह रिश्ता क्या कहलाता है।
यह रिश्ता कया कहलाता है,
कहीं इतना प्यार ,
तो कही इतनी इज्जत,
आखों में है टकरार ,
दिलों में है जज्बात है।
बिना कहे समझ में आना
जाते जाते पलट जाना,
आखों में नमीं है मेरे
मोती बन कर तेरे आखों से गिर जाना ।
कुछ तुम कहो कुछ मै कहू
दिन का ढल जाना।
बातों ही बातों में
कहीं तुम मेरे न हो जाना
बात करती हूँ तुमसे मगर
दिल थोड़ा झिझकता है,
कितनी ही बात करती हूँ तुमसे
कोई निश्कर्ष नहीं निकलता है।
कैसी उलझन है मेरी
,क्या कहूँ में तुमसे,
पर सुनों बता ही दो
यह रिश्ता क्या कहलाता है।
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