Saturday, February 20, 2010

स्नेहा शर्मा


क्या बनूँ क्या करू कुछ इसी सवालों में सचिन घिरा रहता है।साउथ एक्स के स्कूल में बारहवीं का छात्र सचिन थोड़ा परेशान रहता है।परेशानी का कारण उसके माता पिता है।माता पिता चाहते है कि वो दिन रात पढ़ता रहे,किताबो की ही दुनिया में रहे लेकिन वो केवल किताबी कीड़ा नहीं बनना चाहता।उसके टाप न करने पर परिवारवालों का नकारात्मक रवैया से वो परेशान है।उसकी समस्या है कि वो टेकनीक्ली स्ट्रांग है लेकिन किताबी ज्ञान से परे है।यह समस्या केवल सचिन की नहीं बलि्क उन सभी छात्रों की है, जो माता पिता के दवाब में रहते है।
हाल में बनी फिल्म थ्री इडियटस इसी यर्थाथ को दर्शाती है।रटटा मार पढ़ाई का कोई मतलब नहीं होता है।प्रेकिटल जानकारी जरूरी होती है।केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने फिल्म देखने के बाद कहा कि शिक्षा प्रणाली में बदलाव की जरूरत है।कुछ दिन पहल मुम्बई में तीन छात्रो नें आत्महत्या की ।वहीं दूसरी ओर आई आई टी की छात्रा टोया चटजी की मौत नें एक बार फिर से हमारी शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिये है।क्या यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा।
डीयू की छात्रा शालिनी कहती है की हमारं यहां अच्छे नम्बर को महत्व दिया जाता है।छात्रों को केवल ज्यादा नम्बर लाने को मजबूर किया जाता है।क्या जो तोता की तरह बनेगा वहीं सफलता हासिल करेगा ।सच्चाई तो यह है कि आज के इस मूल मंत्र की कोई प्रासिंगता नहीं रह गई।जरूरत है की बच्चो को बचपन से ही हर तरह की जानकारी दी जाये।किताबी कीड़ा न बनाया जाये।किताबी जानकारी का उतना महत्व नहीं जितना प्रेकि्टकल नालेज का।
छात्रो का खोता मानसिक संतुलन आत्महत्याओं जैसी घटनाओं से शिक्षा व्यवस्था की खामियाँ का पता चलता है।जरूरत है इन समस्याओ को समझने की और इस व्यवस्था में बदलाव लाने की।तब जाकर सचिन और शालिनी जैसे स्टूडेंट्स के सवालो का जवाब मिल पाएगा।

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